44 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी
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क्या आपको पता है कि अगर प्रेग्नेंसी के दौरान आपको डायबिटीज होती है तो आगे चलकर आपके बच्चे को मोटापे का खतरा 52% तक बढ़ जाता है। ये आंकड़ा साइंटिफिक जर्नल पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस (PLOS) में पब्लिश एक स्टडी में सामने आया है। वहीं नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, इन बच्चों को भविष्य में टाइप-2 डायबिटीज का खतरा 40% तक बढ़ जाता है।
प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबिटीज को जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। अगर आप पहले कभी डायबिटिक नहीं थीं और सिर्फ प्रेग्नेंसी के समय ही आपका ब्लड शुगर लेवल बढ़ा तो भी अब आपके बच्चे को इस बीमारी का रिस्क दूसरे बच्चों के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
क्या प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज होने पर डॉक्टर ने ये बात आपको बताई थी? बहुत संभव है कि उन्होंने कहा होगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लड शुगर लेवल या ब्लड प्रेशर बढ़ना आम है। यह डिलीवरी के बाद धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है। उन्होंने ये नहीं बताया होगा कि यह कंडीशन आपके बच्चे को भविष्य में बीमार कर सकती है।
इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में जेस्टेशनल डायबिटीज से बच्चों पर हो रहे असर की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- दुनिया में जेस्टेशनल डायबिटीज के आंकड़े क्या हैं?
- बच्चों में डायबिटीज और मोटापे का जोखिम क्यों बढ़ता है?
- जेस्टेशनल डायबिटीज का जोखिम कैसे कम कर सकते हैं?
14.7% प्रेग्नेंट महिलाओं को होती जेस्टेशनल डायबिटीज
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में 14.7% महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज यानी जेस्टेशनल डायबिटीज होती है। जबकि भारत में हर साल लगभग 50 लाख महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज होती है।

जेस्टेशनल डायबिटीज से बच्चों में बढ़ता मोटापा
डॉ. हिमानी शर्मा के मुताबिक, मां का ब्लड शुगर लेवल बढ़ने से बच्चे को गर्भ में जरूरत से ज्यादा शुगर मिलती है। इससे उनका शरीर इसे जन्म से पहले ही स्टोर करना सीख जाता है। इसका सीधा असर बच्चे के दिमाग, मेटाबॉलिज्म और वजन पर पड़ता है। यही कारण है कि भविष्य में इन बच्चों को मोटापा और दूसरी लाइफस्टाइल, डिजीज अन्य बच्चों के मुकाबले ज्यादा होती हैं।

जेस्टेशनल डायबिटीज से बच्चों में बढ़ता टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम
जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण मां का ब्लड शुगर लेवल ज्यादा होता है। यह प्लेसेंटा यानी गर्भ में बच्चे को भोजन पहुंचाने वाली नली के जरिए बच्चे तक भी पहुंचता है। इसे प्रोसेस करने के लिए बच्चे का पैंक्रियाज ज्यादा इंसुलिन बनाना शुरू कर देता है। इससे उसका मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है और आगे चलकर टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम भी बढ़ जाता है।
जेस्टेशनल डायबिटिक मां के बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम कैसे कम हो सकता है?
डॉ. हिमानी शर्मा कहते हैं कि अगर मां को जेस्टेशनल डायबिटीज की शिकायत थी तो ये मानकर चलिए कि बच्चे को दूसरे बच्चों के मुकाबले भविष्य में मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम कहीं ज्यादा है। इसलिए सबसे पहली जिम्मेदारी मां की है कि अपने बच्चों को ऐसी डाइट, लाइफस्टाइल और रुटीन सिखाएं, जिससे उनके स्वस्थ रहने के चांस बढ़ें। इसके लिए ये उपाय अपना सकते हैं, ग्राफिक में देखिए-

जेस्टेशनल डायबिटीज से बचने के लिए क्या करें?
डॉ. हिमानी शर्मा के मुताबिक, प्रेग्नेंसी के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज की मुख्य वजह हॉर्मोनल बदलाव है। इसलिए इससे बचना मुश्किल होता है, लेकिन कंसीव करने के पहले से प्लानिंग शुरू की जाए तो इसका जोखिम कम किया जा सकता है।
- प्रेग्नेंसी के लगभग 6 महीने पहले ब्लड शुगर लेवल चेक करें। अपना HbA1c टेस्ट कराएं और सुनिश्चित करें कि यह बिल्कुल नॉर्मल हो।
- हालांकि HbA1c के साथ मॉर्निंग फास्टिंग इंसुलिन भी जरूर टेस्ट कराएं और यह सुनिश्चित करें कि मॉर्निंग इंसुलिन का लेवल सामान्य हो।
- अगर ब्लड शुगर लेवल सामान्य है, लेकिन इंसुलिन बढ़ा हुआ है तो जेस्टेशनल डायबिटीज के चांस बढ़ जाएंगे।
- फास्टिंग इंसुलिन का लेवल शरीर में 5-15 μU/mL के बीच होना चाहिए।
- फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल 100 से कम होना चाहिए।
- नाश्ते के लगभग 2 घंटे बाद ब्लड शुगर लेवल चेक करें।
- नाश्ते के बाद ब्लड शुगर 120 mg/dL या उससे ज्यादा है तो यह प्रीडायबिटीज का संकेत है।
डॉ. हिमानी शर्मा कहते हैं कि प्री-डायबिटीज का पता लगाने के लिए इंसुलिन लेवल ही मापना चाहिए। असल में शरीर कई बार ज्यादा इंसुलिन रिलीज करके ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल कर लेता है। इसलिए जांच में शुगर सामान्य दिखता है, जबकि की समस्या शुरुआत हो चुकी होती है।
इससे बचने के लिए रेगुलर एक्सरसाइज करें। भोजन में ज्यादा-से-ज्यादा फल-सब्जियां शामिल करें। कुछ भी तला-भुना न खाएं। रोज 8 घंटे की नींद लें। स्ट्रेस मैनेज करें। वेट कंट्रोल में रखें। प्रेग्नेंसी के दौरान शारीरिक श्रम करते रहें। अगर प्रेग्नेंसी से पहले लगातार ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में है तो जेस्टेशनल डायबिटीज का जोखिम अपेक्षाकृत कम हो जाता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब
सवाल: जेस्टेशनल डायबिटीज क्यों होती है?
जवाब: प्रेग्नेंसी के दौरान हॉर्मोनल बदलाव के कारण शरीर इंसुलिन को सही से इस्तेमाल नहीं कर पाता, जिससे ब्लड शुगर बढ़ जाता है। यह समस्या खासकर उन महिलाओं को ज्यादा होती है, जो –
- पहले से ओवरवेट हैं।
- परिवार में डायबिटिक हिस्ट्री है।
- इससे पहले प्रेग्नेंसी में बच्चा ओवरवेट था।
- पहले भी जेस्टेशनल डायबिटीज हो चुकी है।
सवाल: जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण क्या होते हैं?
जवाब: ज्यादातर महिलाओं में इसके कोई खास लक्षण नहीं दिखते, लेकिन कुछ मामलों में ये लक्षण नजर आते हैं-
- बार-बार प्यास लगती है।
- बार-बार पेशाब लगती है।
- बिना मेहनत किए थकान महसूस होती है।
- आंखों में धुंधला दिखाई देता है।
- बार-बार यूरिन और स्किन इन्फेक्शन होता है।
सवाल: जेस्टेशनल डायबिटीज का पता कैसे लगाया जाता है?
जवाब: प्रेग्नेंसी के 24वें से 28वें हफ्ते के बीच डॉक्टर मां का ब्लड शुगर टेस्ट करते हैं। इसमें ये टेस्ट होते हैं-
- पहले खाली पेट ब्लड शुगर लेवल चेक किया जाता है।
- ब्रेकफास्ट के 2 घंटे बाद फिर से ब्लड शुगर मापा जाता है।
- अगर शुगर लेवल ज्यादा होता है तो जेस्टेशनल डायबिटीज डाइग्नोस की जाती है।
- कई ब्लड शुगर लेवल सामान्य से ज्यादा होता है, पर इतना नहीं होता है कि इसे डायबिटीज कहा जा सके। ऐसे मामले में भी बच्चों को भविष्य में मोटापे और टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम दूसरे बच्चों की अपेक्षा ज्यादा होता है।
सवाल: जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर क्या करें?
जवाब: अगर किसी को जेस्टेशनल डायबिटीज है तो इन बातों का ध्यान रखें –
- हेल्दी और बैलेंस्ड डाइट लें- मीठे और तले-भुने खाने से बचें।
- नियमित एक्सरसाइज करें- हल्की वॉकिंग और योग करें।
- ब्लड शुगर मॉनिटर करें- रोज घर पर ब्लड शुगर लेवल चेक करें।
- अगर जरूरत पड़े पर इंसुलिन लें- कुछ कंडीशन में डॉक्टर इंसुलिन सजेस्ट कर सकते हैं।
सवाल: क्या जेस्टेशनल डायबिटीज बच्चे के जन्म के बाद ठीक हो जाती है?
जवाब: हां, ज्यादातर मामलों में बच्चे के जन्म के बाद ब्लड शुगर लेवल नॉर्मल हो जाता है। हालांकि, लगभग 50% महिलाओं को भविष्य में टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए बच्चे के जन्म के बाद भी हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज जरूरी है।
सवाल: क्या जेस्टेशनल डायबिटीज में नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है?
जवाब: हां, अगर डिलीवरी के समय ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में है तो नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है। ब्लड शुगर लेवल बहुत ज्यादा होने पर बच्चे का वजन और आकार बड़ा हो जाता है। इसलिए सी-सेक्शन की जरूरत पड़ सकती है।
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