3 घंटे पहलेलेखक: गौरव तिवारी
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गर्मियों में अक्सर मुंह सूखता होगा। थोड़ा पैदल चल लिया या सीढ़ियां चढ़ लीं तो थकान और कमजोरी लगती होगी। गर्मियों में टेम्परेचर बढ़ने के कारण इस तरह के लक्षण स्वाभाविक हैं। अगर स्वस्थ हैं तो ये समस्याएं सामान्य लगती हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि अगर किसी को हाई बीपी, डायबिटीज, आर्थरायटिस या अस्थमा है तो गर्मियों में उनकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
गर्मी में टेम्परेचर बढ़ने के कारण ब्लड प्रेशर में फ्लेक्चुएशन होने लगता है। ब्लड शुगर तेजी से बढ़ती है। जोड़ों में सूजन हो जाती है और सांस लेने में मुश्किल होने लगती है। इससे निपटने के लिए कई बार डॉक्टर दवाओं के डोज में बदलाव भी करते हैं।
इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज जानेंगे कि गर्मी बढ़ने पर क्रॉनिक डिजीज पर क्या असर होता है। साथ ही जानेंगे कि-
- हाई बीपी में क्या समस्याएं होती हैं?
- डायबिटीज है तो क्या होता है?
- अस्थमा और आर्थरायटिस पर क्या असर होता है?

गर्मी बढ़ने से बीपी पेशेंट्स को क्या दिक्कत होती है?
गर्मी बढ़ने से बीपी पेशेंट्स को कई दिक्कतें हो सकती हैं। जब एनवायर्नमेंटल टेम्परेचर बढ़ता है तो शरीर खुद को ठंडा रखने के लिए वैसोलिडेशन की कोशिश करता है। इससे ब्लड प्रेशर लो हो सकता है।

बीपी पेशेंट्स के लिए दिक्कतें:
लो ब्लड प्रेशर (Hypotension): गर्मी में पसीना निकलने के कारण शरीर में पानी और मिनरल्स की कमी से बीपी कम हो सकता है। इससे चक्कर आने, सिर घूमने और थकान जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension): ज्यादा गर्मी के कारण शरीर को सभी ऑर्गन्स तक ब्लड पहुंचाने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे बीपी बढ़ सकता है। पसीने के कारण शरीर का मिनरल्स बैलेंस बिगड़ सकता है, जिससे बीपी बढ़ सकता है।
गर्मी बढ़ने से डायबिटिक लोगों को क्या दिक्कत होती है?
गर्मी सिर्फ मौसम में बदलाव नहीं लाती, यह डायबिटिक पेशेंट्स को भी प्रभावित करती है। खासकर जब टेम्परेचर 35°C से ऊपर चला जाए, तब शरीर के अंदर का मेटाबॉलिज्म भी बदलने लगता है। गर्मी के कारण शरीर में डिहाइड्रेशन बढ़ता है, जिससे शुगर लेवल पर असर पड़ता है।

डायबिटिक लोगों के लिए दिक्कतें:
हाइपोग्लाइसीमिया (Low Blood Sugar): अगर पसीने के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है तो इंसुलिन से ब्लड शुगर अचानक कम हो सकता है, जिससे कमजोरी, चक्कर और सिरदर्द हो सकता है।
हाइपरग्लाइसीमिया (High Blood Sugar): पसीने के कारण इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी और मौसम के अनुरूप दवाओं की सही डोज न होने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है।
गर्मी बढ़ने पर अस्थमा के पेशेंट्स को क्या समस्या होती है?
गर्मी बढ़ने पर हवा की क्वालिटी, नमी और एलर्जन लेवल सबकुछ प्रभावित हो सकता है। यह अस्थमा पेशेंट्स के लिए ट्रिगर पॉइंट हो सकता है। जब तापमान 35°C से ऊपर पहुंचता है, तब हवा में मौजूद पॉल्यूटेंट्स और एलर्जन्स अधिक सक्रिय हो जाते हैं, जिससे श्वसन नली में सूजन और सिकुड़न बढ़ सकती है।

अस्थमा पेशेंट्स के लिए समस्याएं:
1. ब्रोंकोकॉन्स्ट्रिक्शन (Bronchoconstriction)
गर्मी के साथ जब ह्यूमिडिटी बढ़ती है तो हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम और नमी ज्यादा हो जाती है। इससे अस्थमा पेशेंट्स की एयरवे सिकुड़ने लगती है, जिससे सांस फूलना, खांसी और सीने में जकड़न जैसी समस्याएं हो सकती है।
2. एलर्जन्स और पॉल्यूटेंट्स का असर
गर्मियों में हवा में धूल, परागकण, ओजोन और अन्य एलर्जन्स की मात्रा बढ़ जाती है। ये अस्थमा के ट्रिगर हैं और एक्सपोजर बढ़ने से अटैक की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
3. हीट इंड्यूस्ड एस्पिरेटरी डिस्ट्रेस
ज्यादा गर्मी में शरीर ओवरहीट हो जाता है और सांस तेज चलने लगती है। अस्थमा पेशेंट्स में यह श्वसन नली पर स्ट्रेस डालता है, जिससे दम घुटने जैसा एहसास हो सकता है।
4. इनहेलर या दवा का असर कम होना
कुछ इनहेलर्स को ठंडी जगह पर स्टोर करना जरूरी होता है। गर्मी में गलत स्टोरेज से इनहेलर की पोटेंसी घट सकती है।
गर्मी बढ़ने से आर्थराइटिस पेसेंट्स को क्या समस्याएं होती हैं?
गर्मी में शरीर के जोड़ों पर सीधा असर पड़ता है। खासकर उन लोगों को जो ऑस्टियोआर्थराइटिस, रूमेटॉइड आर्थराइटिस या अन्य इंफ्लेमेटरी जॉइंट डिजीज से जूझ रहे हैं। जैसे ही मौसम गर्म होता है, शरीर के भीतर हाइड्रेशन लेवल, ब्लड सर्कुलेशन और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बदलने लगता है। यह जोड़ों के दर्द, अकड़न और सूजन को प्रभावित कर सकता है।

आर्थराइटिस पेशेंट्स को गर्मियों में होने वाली दिक्कतें:
लक्षण बढ़ सकते हैं
गर्मी के कारण शरीर में इंफ्लेमेशन ट्रिगर हो सकता है, जिससे जोड़ों की सूजन और दर्द अचानक बढ़ सकता है। खासतौर पर रूमेटॉइड आर्थराइटिस में यह बदलाव ज्यादा देखने को मिलता है।
2. डिहाइड्रेशन और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी
गर्मी में पसीने के जरिए सोडियम, पोटेशियम जैसे जरूरी इलेक्ट्रोलाइट्स शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इससे मसल क्रैम्प्स, जोड़ों की अकड़न और कमजोरी हो सकती है।
बचाव और सावधानी के लिए 7 जरूरी टिप्स
1. खूब पानी पिएं और डिहाइड्रेशन से बचें
- दिनभर में 2.5 से 3 लीटर पानी जरूर पिएं।
- पसीने से इलेक्ट्रोलाइट्स बाहर निकलते हैं- नारियल पानी, ओआरएस या नींबू पानी जैसे फ्लूइड्स लें।
- कैफीन, सोडा और मीठे ड्रिंक्स पीने से बचें।
2. दवाइयों और इंसुलिन को सही तापमान में रखें
- इंसुलिन को 2°C से 8°C के बीच फ्रिज में रखें।
- इनहेलर या BP की दवाएं सीधे धूप या गर्मी के संपर्क में न आने दें।
3. शरीर को कूल रखें
- हल्के कॉटन के कपड़े पहनें।
- दोपहर 11 बजे से शाम 4 बजे तक बाहर निकलने से बचें।
- अगर बाहर जाना पड़े तो टोपी, छाता या सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें।
4. खानपान पर ध्यान दें
- हल्का, आसानी से पचने वाला और घर का बना खाना खाएं।
- कम नमक और कम कार्ब्स-फैट वाला खाना खाएं।
- खाने में एंटी-इंफ्लेमेटरी फूड्स जैसे- हल्दी, अदरक, ओमेगा-3 रिच फूड्स जैसे- अलसी, अखरोट शामिल करें।
5. फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है
- सुबह या शाम को हल्की स्ट्रेचिंग या वॉक करें, ताकि जोड़ों की जकड़न न बढ़े।
- बहुत ज्यादा एक्सरसाइज से बीपी या ब्लड शुगर में उतार-चढ़ाव हो सकता है। इसलिए संतुलन रखें।
6. ह्यूमिडिटी और एलर्जी को कंट्रोल करें
- घर में AC या कूलर के फिल्टर साफ रखें।
- अस्थमा पेशेंट्स को धूल, धूप और पंखे की सीधी हवा से बचना चाहिए।
- ब्लैक टी या गुनगुना पानी गले की सूजन में राहत देता है।
7. हेल्थ मॉनिटरिंग करते रहें
- BP पेशेंट्स रोजाना बीपी मॉनिटर करें।
- डायबिटीज पेशेंट्स दिन में 2–3 बार शुगर लेवल चेक करें।
- सांस की दिक्कत हो रही हो या अचानक थकान, चक्कर, सीने में जकड़ हो तो तुरंत डॉक्टर से कंसल्ट करें।
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